बकरीद का महत्व / Importance of Bakri
बकरीद का महत्व और बकरीद का अर्थ :
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता हैं :
आमतौर पर हम सभी जानते हैं कि बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं. मुस्लिम समाज में बकरे को पाला जाता हैं. अपनी हेसियत के अनुसार उसकी देख रेख की जाती हैं और जब वो बड़ा हो जाता हैं उसे बकरीद के दिन अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं जिसे फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता हैं. क्या आप जानते हैं कि किस तरह से यह दिन शुरू हुआ ?
बकरीद की कहानी इतिहास व ईद उल जुहा किसकी याद में मनाया जाता है :
इस इस्लामिक त्यौहार के पीछे एक एतिहासिक तथ्य छिपा हुआ हैं जिसमे कुर्बानी की ऐसी दास्तान हैं जिसे सुनकर ही दिल कांप जाता हैं. बात उन हजरत इब्राहीम की हैं जिन्हें अल्लाह का बंदा माना जाता हैं, जिनकी इबादत पैगम्बर के तौर पर की जाती हैं| जिन्हें हर एक इस्लामिक द्वारा अल्लाह का दर्जा प्राप्त हैं, जिसे इस औदे से नवाज़ा गया उस शख्स का खुद खुदा ने इम्तहान लिया था.
बात कुछ ऐसी हैं : खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए उन्हें यह आदेश दिया कि वे तब ही प्रसन्न होंगे, जब हज़रत अपने बेइंतहा अज़ीज़ को अल्लाह के सामने कुर्बान करेंगे. तब हज़रत इब्राहीम ने कुछ देर सोच कर निर्णय लिया और अपने अज़ीज़ को कुर्बान करने का तय किया. सबने यह जानना चाहा कि वो क्या चीज़ हैं जो हज़रत इब्राहीम को सबसे चहेती हैं जिसे वो आज कुर्बान करने वाले हैं. तब उन्हें पता चला कि वो अनमोल चीज़ उनका बेटा हजरत इस्माइल हैं जिसे वो आज अल्लाह के लिए कुर्बान करने जा रहे हैं. यह जानकर सभी भौंचके से रह गये. कुर्बानी का समय करीब आ गया. बेटे को इसके लिए तैयार किया गया, लेकिन इतना आसान न था| इस कुर्बानी को अदा करना इसलिए हज़रत इब्राहीम ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दी. जब उन्होंने आँखों पर से पट्टी हटाई तब अपने बेटे को सुरक्षित देखा. उसकी जगह इब्राहीम के अज़ीज़ बकरे की कुर्बानी अल्लाह ने कुबूल की. हज़रत इब्राहीम के कुर्बानी के इस जस्बे से खुश होकर अल्लाह ने उसके बच्चे की जान बक्श दी और उसकी जगह बकरे की कुर्बानी को कुबूल किया गया.
तब ही से कुर्बानी का यह मंज़र चला आ रहा हैं जिसे बकरीद ईद-उल-जुहा के नाम से दुनियाँ जानती हैं.
बकरीद का सच :
इसके आलावा इस्लाम में हज करना जिंदगी का सबसे जरुरी भाग माना जाता हैं. जब वे हज करके लौटते हैं तब Bakrid पर अपने अज़ीज़ की कुर्बानी देना भी इस्लामिक धर्म का एक जरुरी हिस्सा हैं जिसके लिए एक बकरे को पाला जाता हैं. दिन रात उसका ख्याल रखा जाता हैं. ऐसे में उस बकरे से भावनाओं का जुड़ना आम बात हैं. कुछ समय बाद बकरीद के दिन उस बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं. ना चाहकर भी हर एक इस्लामिक का उस बकरे से एक नाता हो जाता हैं फिर उसे कुर्बान करना बहुत कठिन हो जाता हैं. इस्लामिक धर्म के अनुसार इससे कुर्बान हो जाने की भावना बढती हैं. इसलिए इस तरह का रिवाज़ चला आ रहा हैं.
कैसे मनाई जाती हैं बकरीद :
सबसे पहले ईद गाह में ईद सलत पेश की जाती हैं.
पुरे परिवार एवम जानने वालो के साथ मनाई जाती हैं.
सबके साथ मिलकर भोजन लिया जाता हैं.
नये कपड़े पहने जाते हैं.
गिफ्ट्स दिए जाते हैं. खासतौर पर गरीबो का ध्यान रखा जाता हैं उन्हें खाने को भोजन और पहने को कपड़े दिये जाते हैं.
बच्चों अपने से छोटो को इदी दी जाती हैं.
ईद की प्रार्थना नमाज अदा की जाती हैं.
इस दिन बकरे के अलावा गाय, बकरी, भैंस और ऊंट की कुर्बानी दी जाती हैं.
कुर्बान किया जाने वाला जानवर देख परख कर पाला जाता हैं अर्थात उसके सारे अंग सही सलामत होना जरुरी हैं. वह बीमार नही होना चाहिये. इस कारण ही बकरे का बहुत ध्यान रखा जाता हैं.
बकरे को कुर्बान करने के बाद उसके मांस का एक तिहाई हिस्सा खुदा को, एक तिहाई घर वालो एवम दोस्तों को और एक तिहाई गरीबों में दे दिया जाता हैं.
इस प्रकार इस्लाम में बकरीद का त्यौहार मनाया जाता हैं. हर त्यौहार प्रेम और शांति का प्रतीक होते हैं जिस प्रकार इस्लाम में कुर्बानी का महत्व होता हैं उसी प्रकार हिन्दू में त्याग का महत्व होता हैं. दोनों का आधार अपने आस – पास प्रेम देना और उनके जीवन के लिए कुर्बानी अथवा त्याग करना हैं इसी भावना के साथ सभी धर्मों में त्यौहार मनाये जाते हैं. लेकिन कलयुग के इस दौर में त्यौहारों के रूप बदलते जा रहे हैं और ये कहीं न कहीं दिखावे की तरफ रुख करते नज़र आ रहे हैं.